बीते 21 मई को छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों पर सबसे बड़ा प्रहार किया. जिसमें नक्सल संगठन के महासचिव बसवराजू समेत 27 हार्डकोर कैडर्स को ढेर कर दिया गया. अब इस मुठभेड़ में मारे नक्सलियों की कहानी सामने आने लगी हैं खासकर महिला नक्सलियों की…जो आपको हैरान कर देती हैं. ये कहानियां तब सामने आई जब मारे गए नक्सलियों के परिजन उनका शव लेने पहुंचे. इससे पता चलता है कि कैसे नक्सलियों ने अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए मासूमों के हाथ में बंदूक थमा दिया जो बाद में उनकी मौत की वजह बना. ऐसी ही दो आदिवासी लड़कियों की कहानियों का जिक्र इस रिपोर्ट में है.
घर में 6 बच्चे थे एक को उठा ले गए नक्सली
नारायणपुर के शासकीय अस्पताल परिसर के मरच्यूरी के बाहर शव मिलने का इंतजार कर रहे अबूझमाड़ के ओरछा से आए हड़मा को हिंदी नहीं आती, वे गोंडी में ही अपनी व्यथा मीडिया को बता रहे हैं. हड़मा की भांजी उनके साथ हैं, जो हिंदी बोल पाती हैं. वो कहती हैं- ‘उसको घर में सब मडको बुलाते थे. पांच बहन एक भाई में वो सबसे बड़ी थी. 2 साल पहले नक्सल संगठन से जुड़े कुछ लोगों का समूह गांव आया. मीटिंग बुलाई गई. हड़मा भी गए.
हड़मा ने जब बताया कि उनके 6 बच्चे हैं तो संगठन के लोगों ने कहा कि एक हमें दे दो. फरमान जारी किया गया कि अगर वो अपना एक बच्चा नहीं देंगे तो उन्हें गांव में रहने और खेती करने नहीं दिया जाएगा. हड़मा में विरोध करने की हिम्मत नहीं थी. जिसके बाद 28 साल की उम्र की बड़ी बेटी मडको को नक्सली अपने साथ ले गए.’ 22 मई को मोबाइल पर सूचना मिली कि उनकी बेटी मडको को मुठभेड़ में मार दिया गया है. इसके बाद परिवार वाले शव लेने नारायणपुर अस्पताल पहुंचे. 21 मई को बसवराजू के साथ मारे गए नक्सलियों के नामों की सूची में मडको का 22वां नंबर है.
बेटी को जबरन ले गए थे नक्सली, 8 लाख का इनाम था
पुलिस द्वारा जारी सूची में मडको का नाम सरिता उर्फ मडको बताया गया है. पता बीजापुर जिले का एक गांव है. पुलिस रिकार्ड में सरिता नक्सलियों के कंपनी नंबर 7 सदस्य थीं, जिसपर 8 लाख रुपये इनाम घोषित था. मरच्यूरी के बाहर खड़े पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं कि कई बार नाम व पता को लेकर संशय रहता है. परिजनों के सामने आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो पाती है. मडको के पिता कहते हैं कि अगर जबरदस्ती उनकी बेटी को नक्सली अपने साथ नहीं ले गए होते तो वो जिंदा होती. आस-पास खड़े कुछ लोग कहते हैं- 30 साल की उम्र में मडको की मौत भले ही मुठभेड़ में पुलिस की गोली से हुई हो, लेकिन उसके स्वतंत्र जीने के अधिकार और सपनों की बेरहम हत्या 2 साल पहले ही नक्सलियों ने कर दी थी.