क्या पाकिस्तान अब खुलकर एक ‘मिलिट्री-ड्रिवन डेमोक्रेसी’ बन चुका है? यह सवाल अब सिर्फ राजनीतिक बहस नहीं, एक हकीकत बनता दिख रहा है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ विदेश दौरों में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की मौजूदगी, नीति निर्माण में उनकी दखल और हालिया “फर्जी जीत” समारोह, ये सभी घटनाएं इशारा करती हैं कि सत्ता की असली चाबी अब सेना के हाथ में है.
25 मई को तुर्की में तुर्क राष्ट्रपति एर्दोगन से मुलाकात के दौरान शहबाज शरीफ के साथ फील्ड मार्शल मुनीर भी मौजूद थे. जब वे ईरान पहुंचे तो वहां भी आसिम मुनीर उनके साथ नजर आए. खुद शहबाज शरीफ ईरान के राष्ट्रपति से उनका परिचय करवाते दिखे. यह एक असाधारण कूटनीतिक कदम था क्योंकि पाक आर्मी चीफ आमतौर पर पीएम के विदेश दौरों में साथ नहीं जाते. मुनीर की एर्दोगन से सीधी मुलाकात ने पाकिस्तान की विदेश नीति में सेना की सीधी भागीदारी को सार्वजनिक कर दिया.
ऑपरेशन बुनीयनुम मर्सूस’ और फर्जी तस्वीर कांड
गाजा-इस्राइल संघर्ष की तर्ज पर भारत से तनाव के दौरान पाकिस्तान ने “ऑपरेशन बुनीयनुम मर्सूस” का दावा किया. उसी दौरान एक डिनर पार्टी में मुनीर ने शरीफ को भारत पर जवाबी कार्रवाई के तौर पर एक फ्रेम की गई तस्वीर भेंट की. लेकिन जल्द ही सोशल मीडिया ने भंडाफोड़ कर दिया कि वह तस्वीर 2017 की चीनी सेना की थी. यह मजाक न केवल सेना की छवि को नुकसान पहुंचा गया, बल्कि शरीफ सरकार की प्रतिष्ठा को भी हिला गया.