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नक्सलियों के खात्मे के बीच, ‘दंतेश्वरी लड़ाके’ की कहानी; सरेंडर के बाद मोर्चे पर जुटीं

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 ये कहानी आज से 5 साल पहले की है. कुछ साल पहले तक वे सुरक्षा बलों के खिलाफ थीं, लेकिन समय बदला और मन भी, अब वे फोर्स के साथ मिलकर नक्सलियों के खिलाफ जंग लड़ रही हैं. छत्तीसगढ़ की संरक्षक देवी के नाम पर वर्दी पहने इन महिला कमांडो को नाम मिला है, ‘दंतेश्वरी लड़ाके’ का. आत्मसमर्पण कर चुकीं और सलवा जुडुम की पीड़ित महिलाएं वैसे तो सरेंडर के बाद ज्यादातर घरेलू कामों में व्यस्त हो जाती हैं, लेकिन इनमें से कुछ हाथों में AK-47 लेकर नक्सलियों के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे पर डटी हैं. आइए जानते हैं इन महिला कमांडो की कहानी.

अपनों को बचाने के लिए उठाई बंदूक

बीजापुर जिले की उसमति 15 साल तक जंगल में बंदूक उठाये अपनों के खिलाफ लड़ती रहीं, गंगलूर शिविर में 6 लोगों को मौत के घाट उतारा. अब बंदूक फिर पकड़ी है लेकिन अपनों को बचाने के लिये. दंतेश्वरी लड़ाके कमांडो उसमति का कहना था कि “इतने दिन नक्सली में रहकर काम किया, खाने पीने का ठीक नहीं था. रातभर चलना कितने सालों से काम करने के बाद परिवार के लिये कुछ नहीं मिला लेकिन सरेंडर होने के बाद क्वॉटर मिला नौकरी मिली और बच्चे लोग पढ़ाई कर रहे हैं, छोटे रहते से जंगल घूमे हैं उन लोगों से लड़ने के लिये मुझे डर नहीं लगता.”

कमांडो मधु पोड़ियाम ने बताया कि “बचेली थाने में मेरे पति थे उन्हें दो गोली नक्सलियों ने मार दी (( पैच)) सर मेरे पति की हत्या की मैं बदला लेना चाहती हूं.” वहीं कमांडो सुंदरी कहती हैं कि “पहले पुलिस के खिलाफ लड़ते थे अब नक्सली के खिलाफ, पुलिस में जाने से हमलोगों को मार देंगे ऐसे सोचते थे. डर नहीं लगता है, पहले लगता था, सरेंडर होने के बाद घर परिवार को मार देंगे अब नहीं लगता.”

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