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बाइडेन से पक्की यारी मगर चीन के साथ ट्रेड भारी, दुश्मन का मुखपत्र बोल रहा शुभ-शुभ!

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यदि आपको लगता है कि भारत सबसे ज्यादा व्यापार अमेरिका से करता है तो यह सही नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ हमारी पक्की यारी तो है, मगर ट्रेड के मामले में भारत का दुश्मन कहे जाने वाले चीन का पलड़ा भारी हो जाता है. वित्त वर्ष 2023-24 में चीन भारत का नंबर 1 ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है. अमेरिका पीछे छूट गया है. उसी दुश्मन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में भारत-चीन के बीच हो रहे व्यापार और भविष्य की संभावनाओं को लेकर एक लेख छापा है. इस लेख का लब्बोलुआब ये है कि दोनों देश अगर एक दूसरे की मदद से आगे बढ़ें तो व्यापारिक रिश्ते और प्रगाढ़ हो सकते हैं. कहा गया है कि दोनों देशों की ताकत और रणनीतियां अलग-अलग हैं. अगर दोनों देश सहयोग से अपनी-अपनी ताकत का इस्तेमाल करें तो यह दोनों देशों के लिए शुभ साबित होगा.

वैसे, भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक संबंधों के बारे में एक आम धारणा यह है कि दोनों एक-दूसरे को देखकर खुश नहीं हैं. राजनीतिक स्तर पर चीन की तरफ से भारत को अस्थिर करने की कई गतिविधियां समय-समय पर रिपोर्ट होती रही हैं. भारत की सीमाओं और राज्यों को अपने नक्शे में दिखाना चीन की पुरानी आदत रही है. दोनों देश एक-दूसरे पर बेशक गोली नहीं चलाते, लेकिन गलवान घाटी में सैनिकों की झड़प की घटना अभी तक सबके जेहन में है. विवादों को अगर परे रखा जाए तो चीन भी शायद सोच रहा है कि भारत के बिना उसका गुजारा नहीं.

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में चीन एक बार फिर से भारत का नंबर 1 ट्रेडिंग पार्टनर बनकर सामने आया है. दोनों देशों के बीच 118.4 बिलियन डॉलर का ट्रेड हुआ है. भारत का निर्यात 8.7 फीसदी बढ़ा है. ये आंकड़े बीते रविवार को ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की तरफ से जारी किए गए थे. बता दें कि इस वित्त वर्ष से पहले के दो वित्त वर्षों (2021-22 और 2022-23) में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा पार्टनर था. गलवान घाटी में सैनिकों की झड़प के बाद भारत द्वारा कई चीनी कंपनियों पर कड़े प्रतिबंध लगाने के चलते अमेरिका के साथ ट्रेड के आंकड़ों का ग्राफ उठा था.

क्या इशारा करते हैं व्यापार के ये आंकड़े?
कहा गया है कि यह अप्रत्याशित डेवलपमेंट चीन और भारत के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है. यह दिखाता है कि कैसे भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के विकास से पूरी अर्थव्यवस्था सुधार की तरफ बढ़ सकती है. काफी समय से भारत वैश्विक फैक्ट्री बनकर चीन को रिप्लेस करने की कोशिश में है. लेकिन अगर ग्लोबल इंडस्ट्री और वैल्यू चेन को बारिकी से देखा जाए तो समझ में आता है कि भारत और चीन अलग-अलग सेग्मेंट में ताकतवर हैं. चूंकि, चीन पहले से मैन्युफैक्चरिंग हब है, ऐसे में भारत का मैन्युफैक्चरिंग पावर बनने का सपना एक-दूसरे के सहयोग से पूरा हो सकता है. इसमें दोनों देशों के पास अवसर होगा.